डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग कैसे तय करें? (How to Price Your Digital Products)

डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग कैसे तय करें? (How to Price Your Digital Products)

डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग कैसे तय करें? (How to Price Your Digital Products)

डिजिटल प्रोडक्ट्स जैसे ई-बुक्स, ऑनलाइन कोर्सेज, सॉफ्टवेयर या अन्य डिजिटल सेवाओं की सही प्राइसिंग करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक सही प्राइसिंग स्ट्रेटेजी से न केवल आपके प्रोडक्ट्स की सेल्स बढ़ सकती है, बल्कि प्रॉफिट मार्जिन भी बेहतर हो सकता है, खासकर अगर आप PPC Ads जैसे Google Ads, Facebook Ads, या Instagram Ads चला रहे हों।

इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि How to Price Your Digital Products के सही तरीके क्या हैं, और कौन-कौन से प्राइस मॉडल्स आपको ज्यादा प्रॉफिट दिला सकते हैं।

प्राइसिंग स्ट्रेटेजी का महत्व (Importance of Pricing Strategy)

प्राइसिंग किसी भी डिजिटल प्रोडक्ट की सफलता का आधार होती है। अगर आपकी प्राइसिंग बहुत कम है तो हो सकता है आपको वांछित प्रॉफिट न मिले और अगर बहुत ज्यादा है तो लोग उसे खरीदने में रुचि नहीं दिखा सकते।

सही प्राइसिंग से सेल्स और प्रॉफिट में सुधार (Improving Sales and Profit with Correct Pricing)

  • प्रोडक्ट की वैल्यू समझें: सबसे पहले अपने डिजिटल प्रोडक्ट की वैल्यू को समझना जरूरी है। ग्राहकों को वह क्या फायदा देगा? इसकी जरूरत कितनी अधिक है?

  • मार्केट रिसर्च: अपनी प्रतियोगिता का विश्लेषण करें। जानें कि आपके जैसे प्रोडक्ट्स को दूसरी कंपनियां किस दाम पर बेच रही हैं। इस जानकारी के आधार पर आप एक औसत प्राइसिंग का अंदाजा लगा सकते हैं।

डिजिटल प्रोडक्ट्स के प्राइसिंग मॉडल्स (Pricing Models for Digital Products)

डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग के लिए सही मॉडल चुनना आपके बिज़नेस की ग्रोथ और प्रॉफिटबिलिटी के लिए बेहद ज़रूरी है। आपके प्रोडक्ट की टाइप, ऑडियंस, और मार्केट के आधार पर आप विभिन्न प्राइसिंग मॉडल्स को अपनाकर बेहतर सेल्स और प्रॉफिट हासिल कर सकते हैं।

यहाँ कुछ प्रमुख प्राइसिंग मॉडल्स दिए गए हैं जो डिजिटल प्रोडक्ट्स के लिए सबसे अधिक प्रभावी माने जाते हैं:

1. एकमुश्त भुगतान मॉडल (One-time Purchase Model)

इस मॉडल में कस्टमर को एक बार ही पेमेंट करना पड़ता है और वे प्रोडक्ट को परमानेंटली एक्सेस कर सकते हैं। यह मॉडल अक्सर सॉफ़्टवेयर, ई-बुक्स, ऑनलाइन कोर्सेज़, या डिज़ाइन टेम्प्लेट्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

  • फायदे:

    • आपको तुरंत और एकमुश्त पेमेंट मिलती है।
    • कस्टमर को बार-बार पेमेंट करने की जरूरत नहीं होती।
    • सिंपल और स्ट्रेटफॉरवर्ड प्राइसिंग होती है।
  • नुकसान:

    • रेगुलर इनकम का कोई स्रोत नहीं होता।
    • आप अपने कस्टमर्स के साथ लॉन्ग-टर्म इंगेजमेंट नहीं बना पाते हैं।

2. सब्सक्रिप्शन मॉडल (Subscription Model)

सब्सक्रिप्शन मॉडल में कस्टमर्स को एक निर्धारित समय (महीने, 3 महीने, 6 महीने, या साल) के लिए भुगतान करना पड़ता है। इस मॉडल में रेगुलर इनकम होती है और कस्टमर्स को आपके प्रोडक्ट्स या सर्विसेस का लगातार एक्सेस मिलता है।

  • फायदे:

    • रेगुलर और प्रीडिक्टेबल इनकम मिलती है।
    • कस्टमर्स के साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप बनती है।
    • ऑडियंस रिटेंशन बेहतर होता है।
  • नुकसान:

    • कस्टमर्स को बार-बार भुगतान करना पड़ता है, जो कभी-कभी निराशा पैदा कर सकता है।
    • शुरुआती बिक्री धीमी हो सकती है।

3. फ्रीमियम मॉडल (Freemium Model)

फ्रीमियम मॉडल में कस्टमर्स को प्रोडक्ट का एक बेसिक वर्जन मुफ्त में दिया जाता है, जबकि एडवांस्ड फीचर्स या प्रीमियम कंटेंट के लिए उन्हें भुगतान करना पड़ता है। यह मॉडल सॉफ़्टवेयर, एप्स, और डिजिटल टूल्स के लिए बहुत प्रचलित है।

  • फायदे:

    • यह मॉडल कस्टमर्स को आकर्षित करने में मदद करता है, क्योंकि बेसिक वर्जन मुफ्त होता है।
    • प्रीमियम फीचर्स के लिए अपग्रेड करने की संभावना रहती है।
    • बड़ी ऑडियंस तक पहुंचने का मौका मिलता है।
  • नुकसान:

    • बेसिक यूज़र्स से कोई इनकम नहीं होती, जब तक वे अपग्रेड न करें।
    • फ्री यूज़र्स को प्रीमियम में कन्वर्ट करना कठिन हो सकता है।

ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

4. पे-व्हाट-यू-वांट मॉडल (Pay-What-You-Want Model)

इस मॉडल में कस्टमर्स से पेमेंट के लिए कोई तय कीमत नहीं होती, बल्कि वे अपनी मर्जी के हिसाब से भुगतान कर सकते हैं। यह मॉडल छोटे डिजिटल प्रोडक्ट्स, जैसे ई-बुक्स या छोटे टूल्स के लिए कारगर साबित हो सकता है।

  • फायदे:

    • कस्टमर्स को फ्रीडम होती है कि वे अपनी इच्छा के अनुसार भुगतान करें।
    • यह मॉडल सोशल मीडिया पर वायरल हो सकता है और आपके प्रोडक्ट को बड़ा एक्सपोजर मिलता है।
  • नुकसान:

    • आप प्रोडक्ट के सही मूल्य से कम पेमेंट पा सकते हैं।
    • स्टेबल और प्रेडिक्टेबल इनकम का अभाव होता है।

5. बंडलिंग मॉडल (Bundling Model)

इस मॉडल में आप कई प्रोडक्ट्स को एक साथ बंडल कर एक विशेष कीमत पर बेचते हैं। इससे कस्टमर्स को ज्यादा वैल्यू मिलती है और आपकी इनकम भी बढ़ती है।

  • फायदे:

    • कस्टमर्स को ज्यादा वैल्यू मिलती है और वे एक ही समय में कई प्रोडक्ट्स खरीदते हैं।
    • अधिक बिक्री करने का अवसर मिलता है।
  • नुकसान:

    • बंडल के कारण व्यक्तिगत प्रोडक्ट्स की वैल्यू कम हो सकती है।
    • कुछ कस्टमर्स को बंडल में शामिल सभी प्रोडक्ट्स की जरूरत नहीं हो सकती।

6. टीयरड प्राइसिंग मॉडल (Tiered Pricing Model)

इस मॉडल में आप अपने प्रोडक्ट्स या सर्विसेस को अलग-अलग फीचर्स या सेवाओं के हिसाब से विभाजित करते हैं और हर स्तर पर अलग कीमत रखते हैं। उदाहरण के लिए, बेसिक, स्टैंडर्ड, और प्रीमियम प्लान।

  • फायदे:

    • कस्टमर्स को उनकी ज़रूरत के हिसाब से प्लान चुनने का मौका मिलता है।
    • इससे अलग-अलग बजट वाले कस्टमर्स को टारगेट किया जा सकता है।
    • अपसेलिंग के अच्छे मौके होते हैं।
  • नुकसान:

    • कई बार कस्टमर्स को यह तय करना मुश्किल हो सकता है कि उन्हें कौन सा प्लान चुनना चाहिए।
    • प्लान्स की जटिलता के कारण कस्टमर्स कन्वर्जन रेट पर असर पड़ सकता है।

7. डिस्काउंट और कूपन मॉडल (Discounts and Coupons Model)

डिजिटल प्रोडक्ट्स के लिए डिस्काउंट और कूपन देना एक प्रभावी स्ट्रेटेजी हो सकती है। इससे कस्टमर्स को खरीदारी करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है और बिक्री में इज़ाफ़ा हो सकता है।

  • फायदे:

    • कस्टमर्स को समय-समय पर आकर्षित करने के लिए एक अच्छा तरीका है।
    • शॉर्ट-टर्म प्रमोशंस और सेल्स में तेजी आती है।
  • नुकसान:

    • बार-बार डिस्काउंट देने से प्रोडक्ट की वैल्यू कम हो सकती है।
    • ग्राहक नियमित कीमत पर खरीदारी करने के लिए कम इच्छुक हो सकते हैं।

प्राइसिंग स्ट्रेटेजी का महत्व (Importance of Pricing Strategy)

प्राइसिंग स्ट्रेटेजी किसी भी बिज़नेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है, खासकर डिजिटल प्रोडक्ट्स के मामले में। सही प्राइसिंग से न केवल सेल्स बढ़ती हैं, बल्कि यह आपके प्रोडक्ट की वैल्यू को भी दर्शाती है। प्राइसिंग आपकी मार्केट पोजीशनिंग, टारगेट ऑडियंस, और प्रोडक्ट की क्वालिटी का सीधा असर डालती है। अगर आप बहुत ज्यादा या बहुत कम कीमत तय करते हैं, तो इससे कस्टमर्स का विश्वास और आपकी सेल्स पर असर पड़ सकता है।

प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को ध्यान से तैयार करने से आपको निम्नलिखित फायदे मिल सकते हैं:

  • कस्टमर्स का विश्वास बढ़ता है: सही प्राइसिंग से कस्टमर्स को यह एहसास होता है कि वे अपने पैसे का सही मूल्य प्राप्त कर रहे हैं।
  • मार्केट में कंपटीशन के मुकाबले बेहतर पोजिशनिंग: जब आप अपने प्रतिस्पर्धियों से अलग प्राइसिंग स्ट्रेटेजी अपनाते हैं, तो इससे आपको बाजार में एक मजबूत स्थिति मिलती है।
  • सेल्स में सुधार: कस्टमर्स जब आपके प्रोडक्ट की कीमत को उचित पाते हैं, तो वे खरीदने के लिए अधिक प्रेरित होते हैं।
  • लंबी अवधि में प्रॉफिट में वृद्धि: सही प्राइसिंग से आपके प्रोडक्ट्स की लगातार मांग बनी रहती है, जिससे प्रॉफिट में भी बढ़ोतरी होती है।

सही प्राइसिंग से सेल्स और प्रॉफिट में सुधार (How Correct Pricing Improves Sales and Profit)

सही प्राइसिंग आपकी सेल्स और प्रॉफिट पर सकारात्मक असर डाल सकती है। जब आप अपने प्रोडक्ट की वैल्यू के आधार पर उचित कीमत तय करते हैं, तो यह कस्टमर्स के लिए आकर्षक बन जाती है।

  1. कस्टमर सैटिस्फैक्शन: कस्टमर्स को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें उनके पैसे के बदले सही वैल्यू मिल रही है। अगर प्राइसिंग ज्यादा है और वैल्यू कम, तो कस्टमर आपके प्रोडक्ट को छोड़ सकते हैं।
  2. मार्जिन में वृद्धि: सही प्राइसिंग से आपका प्रॉफिट मार्जिन भी बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, अगर आप कस्टमर की जरूरतों और बजट को ध्यान में रखकर प्राइसिंग करते हैं, तो आप उनके साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप बना सकते हैं।
  3. PPC Ads और प्रमोशन का सही इस्तेमाल: अगर आपकी प्राइसिंग स्ट्रेटेजी सही है, तो PPC Ads (Google Ads, Facebook Ads, Instagram Ads) चलाने के बाद भी आप प्रॉफिट में रह सकते हैं। सही प्राइसिंग आपके विज्ञापन खर्च को कवर करती है और आपको मार्केटिंग से अच्छी ROI (Return on Investment) मिलती है।
  4. कंपटीशन से आगे बढ़ने में मदद: जब आप अपने प्रतिस्पर्धियों से थोड़ा अलग, लेकिन सही प्राइसिंग रखते हैं, तो आप अपने मार्केट शेयर को बढ़ा सकते हैं। इससे आपके प्रोडक्ट्स ज्यादा कस्टमर्स तक पहुंच सकते हैं।

सही प्राइसिंग स्ट्रेटेजी कैसे बनाए? (How to Create the Right Pricing Strategy?)

सही प्राइसिंग स्ट्रेटेजी बनाने के लिए आपको कई फैक्टर्स पर ध्यान देना होगा:

1. टारगेट ऑडियंस की पहचान करें (Identify Your Target Audience)

सबसे पहले आपको अपनी टारगेट ऑडियंस की पहचान करनी होगी। यह जानना ज़रूरी है कि आपके कस्टमर्स कौन हैं, उनकी आर्थिक स्थिति क्या है, और वे कितनी कीमत चुकाने को तैयार हैं। अपने ऑडियंस की जरूरतों और बजट के हिसाब से प्राइसिंग तय करें।

2. मार्केट रिसर्च करें (Conduct Market Research)

मार्केट रिसर्च आपके प्रतिस्पर्धियों की प्राइसिंग और उनकी स्ट्रेटेजी को समझने में मदद करती है। इससे आपको यह पता चलेगा कि आपके प्रोडक्ट की तुलना में मार्केट में अन्य प्रोडक्ट्स की कीमत क्या है और उनकी डिमांड कैसी है।

3. प्रोडक्ट की वैल्यू को ध्यान में रखें (Consider Product Value)

अपने प्रोडक्ट की यूनिक वैल्यू को ध्यान में रखते हुए प्राइसिंग तय करें। अगर आपका प्रोडक्ट बाजार में उपलब्ध अन्य प्रोडक्ट्स से बेहतर है, तो आप उसे थोड़ी ऊंची कीमत पर बेच सकते हैं।

4. प्राइसिंग मॉडल चुनें (Choose the Right Pricing Model)

आपके प्रोडक्ट्स के लिए सही प्राइसिंग मॉडल चुनना भी जरूरी है। उदाहरण के लिए:

  • One-time pricing: अगर आपका प्रोडक्ट एक बार में खरीदने के लिए है, तो एकमुश्त प्राइसिंग मॉडल उपयुक्त हो सकता है।
  • Subscription model: अगर आपका प्रोडक्ट एक सर्विस या सॉफ़्टवेयर है, तो सब्सक्रिप्शन मॉडल बेहतर होता है। इससे आपको रेगुलर इनकम मिलती है।
  • Freemium model: फ्रीमियम मॉडल में आप अपने प्रोडक्ट का एक बेसिक वर्जन फ्री में देते हैं और एडवांस फीचर्स के लिए चार्ज करते हैं।

5. प्राइसिंग का नियमित रिव्यू करें (Review Pricing Regularly)

मार्केट ट्रेंड्स और कस्टमर फीडबैक के आधार पर अपनी प्राइसिंग को समय-समय पर रिव्यू और अपडेट करें। यह आपको बाजार में टिके रहने और अपने प्रोडक्ट्स की डिमांड बनाए रखने में मदद करेगा।

6. PPC Ads के साथ प्राइसिंग एडजस्ट करें (Adjust Pricing with PPC Ads)

अगर आप PPC Ads जैसे Google Ads, Facebook Ads, या Instagram Ads चला रहे हैं, तो आपको अपनी प्राइसिंग को ध्यान से तय करना होगा ताकि आपके विज्ञापन खर्च के बाद भी प्रॉफिट बना रहे। विज्ञापन चलाने से पहले अपने प्रोडक्ट की कीमत का आकलन करें और देखे कि क्या यह लागत को कवर कर सकती है या नहीं।

प्राइसिंग के साथ एक्स्ट्रा फीचर्स का फायदा (Benefits of Adding Extra Features)

अपने डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग के साथ एक्स्ट्रा फीचर्स या बोनस ऐड करने से कस्टमर्स को ज्यादा आकर्षित किया जा सकता है। इससे प्रोडक्ट की वैल्यू बढ़ती है और कस्टमर ज्यादा कीमत चुकाने के लिए तैयार होते हैं।

बंडलिंग प्रोडक्ट्स (Bundling Products)

अगर आपके पास एक से अधिक डिजिटल प्रोडक्ट्स हैं, तो आप उन्हें बंडल कर सकते हैं। इससे आप अधिक मूल्य पर अधिक सेल्स कर सकते हैं।

फ्री ट्रायल या डेमो (Free Trial or Demo)

ग्राहक को आपके प्रोडक्ट की वैल्यू का अंदाजा तभी होगा जब वो उसे उपयोग करेगा। फ्री ट्रायल या डेमो वर्शन देने से ग्राहक प्रोडक्ट के लिए पैसे खर्च करने को तैयार हो सकता है।

प्राइसिंग के साथ 2-3 और जरूरी चीजें ध्यान में रखें (Other Important Factors Along with Pricing)

टार्गेट ऑडियंस (Target Audience)

आपकी ऑडियंस कौन है, यह आपकी प्राइसिंग पर बड़ा असर डालता है। अगर आपका प्रोडक्ट उन लोगों के लिए है जो ज्यादा खर्च कर सकते हैं, तो आप हाई-प्राइसिंग मॉडल अपना सकते हैं।

ब्रांड वैल्यू (Brand Value)

अगर आपका ब्रांड पहले से ही एक पहचान बना चुका है, तो आपकी प्रोडक्ट की प्राइसिंग ज्यादा हो सकती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग एक महत्वपूर्ण और जटिल प्रक्रिया है। सही रणनीति अपनाकर आप अपने प्रोडक्ट्स की सेल्स और प्रॉफिट को बेहतर बना सकते हैं। चाहे आप How to Price Your Digital Products का सबसे बेसिक तरीका अपनाएं या एडवांस प्राइसिंग मॉडल्स, यह जरूरी है कि आप मार्केट और अपने कस्टमर्स की जरूरतों का पूरा ख्याल रखें। सही प्राइसिंग के साथ, PPC Ads का इस्तेमाल करके भी आप प्रॉफिट कमा सकते हैं।

FAQ: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब।

सवाल 1: डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग में सबसे जरूरी फैक्टर क्या है?

जवाब: डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर आपका टार्गेट ऑडियंस है। अगर आप अपने कस्टमर्स की जरूरतों और बजट को समझते हैं, तो आप सही कीमत तय कर सकते हैं।

सवाल 2: क्या मुझे अपने डिजिटल प्रोडक्ट्स को हाई या लो प्राइस करना चाहिए?

जवाब: यह आपके प्रोडक्ट की क्वालिटी, वैल्यू, और मार्केट डिमांड पर निर्भर करता है। अगर आपके प्रोडक्ट की वैल्यू ज्यादा है, तो हाई प्राइसिंग स्ट्रेटेजी अपनाई जा सकती है, लेकिन स्टार्टअप के लिए शुरुआती कीमत कम रखना फायदेमंद हो सकता है।

सवाल 3: PPC Ads के लिए बजट कैसे निर्धारित करें?

जवाब: PPC Ads के लिए बजट तय करने से पहले आपको यह जानना होगा कि आपके प्रोडक्ट पर कितना प्रॉफिट मार्जिन है। इसके बाद, उस बजट का एक हिस्सा PPC Ads के लिए अलॉट करें जो आपकी सेल्स और ROI (Return on Investment) को बढ़ा सके।

सवाल 4: कौन से प्राइस मॉडल डिजिटल प्रोडक्ट्स के लिए सबसे बेहतर होते हैं?

जवाब: डिजिटल प्रोडक्ट्स के लिए सब्सक्रिप्शन मॉडल, एकमुश्त प्राइसिंग (one-time pricing), और फ्रीमियम मॉडल (freemium model) सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। सब्सक्रिप्शन मॉडल में रेगुलर इनकम होती है, जबकि एकमुश्त प्राइसिंग आपके प्रोडक्ट की सिंगल-टाइम सेल्स को टारगेट करती है।

सवाल 5: प्राइसिंग कम रखने से प्रोडक्ट्स की वैल्यू घट जाती है?

जवाब: जी हां, बहुत कम प्राइसिंग से आपके प्रोडक्ट की वैल्यू कम हो सकती है। इसलिए, सही बैलेंस बनाना जरूरी है ताकि कस्टमर्स को प्रोडक्ट वैल्यू के हिसाब से सही कीमत लगे।

सवाल 6: क्या डिजिटल प्रोडक्ट्स की प्राइसिंग बार-बार बदलनी चाहिए?

जवाब: हां, मार्केट डिमांड और कस्टमर फीडबैक के आधार पर आप अपनी प्राइसिंग स्ट्रेटेजी में बदलाव कर सकते हैं। इससे आपको मार्केट ट्रेंड्स के हिसाब से एडजस्ट करने में मदद मिलती है।

सवाल 7: क्या फ्री ट्रायल देना फायदेमंद होता है?

जवाब: हां, फ्री ट्रायल आपके प्रोडक्ट की वैल्यू दिखाने और कस्टमर्स को आकर्षित करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है। इससे आपकी कस्टमर कंवर्जन रेट बढ़ सकती है।

सवाल 8: क्या कूपन या डिस्काउंट से प्रोडक्ट की प्राइसिंग स्ट्रेटेजी पर असर पड़ता है?

जवाब: कूपन और डिस्काउंट्स सही तरीके से इस्तेमाल किए जाएं तो सेल्स बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं। लेकिन इनका इस्तेमाल सीमित समय और स्ट्रेटेजी के साथ करना चाहिए ताकि आपके प्रोडक्ट की वैल्यू बनी रहे।

सवाल 9: क्या प्राइसिंग स्ट्रेटेजी के लिए Competitor Analysis करना जरूरी है?

जवाब: हां, अपने competitors की प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को समझकर आप अपनी प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को और बेहतर बना सकते हैं और मार्केट में खुद को अलग तरीके से पोजीशन कर सकते हैं।

सवाल 10: PPC Ads के लिए प्राइसिंग का क्या संबंध है?

जवाब: PPC Ads के लिए प्राइसिंग का सीधा संबंध आपके ROI (Return on Investment) से होता है। अगर आपकी प्राइसिंग सही है, तो आपके PPC Ads से ज्यादा कस्टमर्स आकर्षित होंगे और प्रॉफिट भी बढ़ेगा।

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